हिंदी भाषा प्रेमी गीतांजलि श्री ने अंतर्राष्ट्रीय बुकर अवॉर्ड जीत कर रचा इतिहास

हिंदी भाषा प्रेमी गीतांजलि श्री ने अंतर्राष्ट्रीय बुकर अवॉर्ड जीत कर रचा इतिहास

गीतांजलि श्री एक भारतीय प्रसिद्ध कथाकार और उपन्यासकार हैं। वह साल 2002 में मई में अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित की गईं थीं। उनके द्वारा लिखी गई किताब टॉम्ब ऑफ सैंड बुकर जीतने वाली हिंदी भाषा की पहली किताब है। इसके साथ ही इनकी यह किताब किसी भी भारतीय भाषा में अवॉर्ड जीतने वाली पहली किताब बन गयी है।
गीतांजली का जन्म 12 जून 1957 में उत्तर-प्रदेश के मैनपुरी जनपद में हुआ था। लेकिन उनका परिवार मूल रूप से गाजीपुर के गोडउर गाँव का रहने वाला है। उनके पिता का नाम अनिरुद्ध पांडेय और मां का नाम श्री कुमारी पांडेय है। इनके दो भाई ज्ञानेंद्र और शैलेंद्र है व दो बहनें जयंती और गायत्री हैं। इनके पिता एक सिविल सेवक थे जिसकी वजह से वह कई जगहों पर रह चुके हैं। इनके पिता एक लेखक भी थे, जिसकी वजह से गीतांजलि को बचपन से ही लेखन में काफी रूचि थी, लेकिन फिर भी उनके हिंदी लेखक बनने के खिलाफ थे उनका मानना था कि आने वाला समय अंग्रेजी लेखकों का होगा और उनको भी अंग्रेजी भाषा का लेखक बनना चाहिए। उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि, अगर मैं हिंदी में लिखूंगी तो मेरा जीवन बर्बाद हो जाएगा, वह कहते थे कि भविष्य अंग्रेजी का है... मैंने अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई की है लेकिन मेरी मां हिंदी बोलती थीं और वह मेरी मातृ भाषा है। और वह आजादी के बाद का दौर था और लोगों में अपनी भाषा के प्रति प्रेम था, और उस समय में हमें कई हिंदी लेखक सुनने को मिले। गीतांजलि ने बचपन में पंचतंत्र, चंदामामा, पराग और नंदन जैसे उपन्यास पढ़े थे, जिन्होंने उनको हिंदी लेखक बनने को प्रेरणा दी। इनकी प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में हुई है। इसके बाद वह आगे को पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गईं थीं और यहीं के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से इतिहास में एम. ए. किया था। इसके बाद उन्होंने इतिहास को छोड़ हिंदी से डॉक्टरेट किया था। उन्होंने महाराज सयाजी राव विवि, वडोदरा से प्रेमचंद्र और उत्तर भारत के औपनिवेशिक शिक्षित वर्ग विषय पर शोध की उपाधि भी प्राप्त की है। इसके बाद उन्होंने कुछ समय के लिए जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पढ़ाना शुरू किया था। इसके बाद वह सूरत के सेंटर फॉर सोशल स्टडीज में पोस्ट-डॉ टरल रिसर्च के लिए चली गईं थीं, और यहीं पर रहते हुए उन्होंने कहानियाँ लिखने की शुरुवात कीं। गीतांजलि ने बाल अधिकारों के मुद्दे पर भी कई बेहतरीन कहानियां लिखीं हैं, इनकी यह कहानियां बाल अधिकार संरक्षक डॉ एस पी सिंह ने कई सम्मेलनों में कही और सुनाई गई है। वह भारतीय हिंदी लेखक मुंशी प्रेमचन्द की पोती की करीबी दोस्त हैं, वह साहित्य के प्रति  अपने इस प्रेम का श्रेय मुंशी प्रेमचंद के घराने को देती हैं। उन्होंने मुंशी प्रेमचन्द के साहित्यिक कार्य में पीएचडी करने के दौरान अपने काम के संकलन को एक पुस्तक में बदल दिया और यह उनका हिंदी साहित्य में पहला कदम था। 
इसके बाद उन्होंने बतौर अध्यापिका होने के साथ - साथ लिखने का भी काम जारी रखा, उस समय उनको काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा था, उस समय उनके पति ने उनका बहुत साथ दिया, और उनको सलाह दी कि वह अपने शिक्षण कार्य से इस्तीफा देकर पूर्ण रूप से लेखक बन जाएं। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने अपनी पहली कहानी अपने पति के साथ ट्रेन सफर में लिखी थी। उन्होंने बताया कि जब मैं ट्रेन में सफर कर रही थीं तब मैंने अपने आप से पूछा कि अगर मुझे एक लेखक बनना है तो अब तक मैंने लिखा क्या है, और उसी सफर में ही मैंने उन्होंने अपनी पहली कहानी लिखी जो सबसे पहले उन्होंने अपने पति को पढ़ने को दी, और उनके पति ने कहा कि इस कहानी पढ़ कर लगता ही नहीं की यह किसी नए लेखक ने लिखी है, और यहीं से उनकी हिम्मत बंधी और उनके लिखने का दौर शुरू हुआ। 
उनके करियर की शुरुवात साल 1980 में हिंदी पब्लिशिंग हाउस राजकमल से हुई थी। साल 1987 में एक प्रतिष्ठित हिंदी पत्रिका हंस में छपी बेलपत्रिका के साथ वह एक लघु कथा लेखिका के तौर पर उभर कर आईं, और साल 1991 में उनकी लघु कथाओं का पहला संग्रह 'अनुगूंज' प्रकाशित हुआ। इसके बाद उन्होंने अपने उपन्यास माई के लिए खूब प्रशंसा बटोरी। इनके इस उपन्यास को साल 2001 में क्रॉसवर्ड बुक अवॉर्ड के लिए चुना गया था। साल 2017 में नीता कुमार ने इसका अंग्रेजी अनुवाद किया, जिसके लिए उनको साहित्य अकादमी अनुवाद पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इनके इस उपन्यास का अनुवाद सर्बियाई, उर्दू, फ्रेंच, जर्मन और कोरियाई सहित और कई भाषाओं में किया जा चुका है। उनका दूसरा प्रसिद्ध उपन्यास 'हमारा शहर उस बरस' उस समय के आस पास केंद्रित है जब अयोध्या बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद सांप्रदायिक हिंसा का मौहौल था। साल 2001 में उनका एक और उपन्यास तिरोहित आया, और साल 2006 में खाली जगह उपन्यास प्रकाशित हुआ। साल 2018 में उन्होंने 'रेत समाधि' नाम का उपन्यास लिखा था। इस उपन्यास का अंग्रेजी अनुवाद डेजी रॉक ने किया है, जिसका नाम है 'टॉम्ब ऑफ सैंड' और इसको अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब सराहा गया है। उनके इस अंग्रेजी अनुवाद उपन्यास को 26 अप्रैल 2022 को अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार दिया गया था, और यह सम्मान प्राप्त करने वाली पहली भारतीय पुस्तक बन गई। गीतांजलि और डेज़ी को 50,000 पाउंड का साहित्यिक पुरस्कार मिला था, जिसको उन्होंने समान रूप से विभाजित कर लिया था।
वह भारत की संस्कृति मंत्रालय और जापान की एक फाउंडेशन से जुड़ी हुई हैं। लेखन के अलावा उनको थिएटर का भी बहुत शौक है, इसलिए वह साल 1989 से इस से जुड़ी हुईं हैं। उन्होंने मुम्बई के पृथ्वीराज थिएटर के लिए काफी नाटक लिखे हैं। उनको हिंदी संगीत सुनना भी बहुत अच्छा लगता है, मल्लिकार्जुन मंसूर और आमिर खान उनके पसंदीदा हैं।