कई कठिनाइयों का सामना करने के बाद भी आज सबसे बड़ी दवा उत्पादक कंपनी की मालकिन

भारत में आज ऐसी कई महिलाएं हैं जिनके नाम व्यापार व उद्योग जगत काफी प्रचलित हैं। वह देश की प्रतिष्ठित कंपनियों को चला रही हैं या फिर बड़े पद पर कार्यरत रहकर अपनी भूमिका सिद्ध कर रही हैं। ऐसे ही देश की पहली स्वनिर्मित अरबपति महिला हैं किरण मजूमदार शाॅ, जिनका नाम पूरे विश्व में एक सफल बिजनेस वुमन तौर पर प्रसिद्ध है। फोर्ब्स सूची के अनुसार वह भारत की पांचवी सबसे अमीर महिला हैं, जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और काबिलियत के दम पर यह मुकाम हासिल किया है। वह भारत की सबसे बड़ी लिस्टेड बायोफार्मास्युटिकल कंपनी बायोकॉन की फाउंडर और अध्यक्ष हैं। उनकी यह कम्पनी दवा उत्पादन के क्षेत्र की बड़ी कंपनी है।
किरण का जन्म बंगलौर में 23 मार्च 1953 को हुआ था, उनके पिता का नाम रसेंद्र मजूमदार और मां का नाम यामिनी मजूमदार है। उनके दो छोटे भाई भी है, जिनके नाम रवि मजूमदार और देव मजूमदार हैं। रवि कनाडा में एक मैथमेटिक्स प्रोफेसर हैं तो वहीं देव एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। उन्होंने अपनी शुरुवाती शिक्षा बिशप कॉटन गर्लस हाई स्कूल से की थी। वह शुरुवात से ही मेडिकल स्कूल में भरती होना चाहती थीं, लेकिन इसके बदले उन्होंने जीव विज्ञान विषय ले लिया और बीएससी जूलॉजी ऑनर्स लेकर बंगलौर विश्वविद्यालय से साल 1973 में बीएससी की डिग्री प्राप्त कर ली। इसके बाद उन्होंने साल 1975 में मॉल्टिंग और ब्रूइंग पर बैलेरैट कॉलेज, मेलबोर्न यूनिवर्सिटी, से स्नातक की डिग्री हासिल कर ली थी।
उन्होंने मेलबोर्न के कार्लटोन और यूनाइटेड ब्रुअरीज में बतौर प्रशिक्षु ब्रुअर काम किया, इसके बाद उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के बैरेट ब्रदर्स तथा बर्स्टोन में बतौर प्रशिक्षु माल्स्टर के रूप में भी काम किया। इसके बाद उन्होंने भारत लौटने के बाद कलकत्ता की जूपिटर ब्रुअरीज लिमिटेड में तकनीकी सलाहकार के रूप में काम किया। इसके अलावा वह दो साल 1975 से लेकर 1977 तक बड़ौदा के स्टैंडर्ड मॉल्टिंग कॉरपोरेशन में तकनीकी प्रबंधक के रूप में भी काम कर चुकी हैं।
वह आज जिस भी मुकाम पर हैं, उसमें उनकी कंपनी का बहुत बड़ा योगदान है, इसलिए उनकी सफलता की कहानी उनकी कंपनी बायोकॉन लिमिटेड के बिना पूरी हो ही नहीं सकती। उन्होंने साल 1978 में बायोकॉन की स्थापना की थी। उस समय स्टारअप का चलन नहीं था और खासतौर पर महिलाओं के लिए बिजनेस शुरू करना या फिर काम करना बहुत मुश्किल था। लोगों को उस वक्त महिलाओं में बिजनेस की समझ है, यह मानना लोगों के लिए असंभव था, इस वजह से किरण को भी अपनी कंपनी की शुरुवाती सफर में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था, क्योंकि ना ही कोई बैंक उन्हें पैसे देने के लिए तैयार था और ना ही कोई उनके साथ काम करना चाहता था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी, और अपने पास उपलब्ध संसाधनों और बैंक में एकत्र मात्र 1200 रूपए से अपने गैराज में ही बायोकॉन की शुरुवात की।
उनकी इस कठिनाई की परिस्थिति में उनके माता-पिता ने उनका भरपूर साथ दिया। उन्होंने शुरुवात में बहुत मुश्किलों का सामना किया, लेकिन अपनी काबिलियत से उन्होंने धीरे-धीरे अपनी कंपनी बायोकॉन का भारतीय बाज़ार में नाम बना दिया था। उनकी कंपनी ने मधुमेह, कैंसर विज्ञान व प्रतिरोधकभंजक बीमारियों पर कई शोध किए हुए हैं। बायोकॉन एंजाइमों का विनिर्माण करने वाली देश की पहली ऐसी कंपनी है, जो विदेशों में भी दवा का निर्यात करती थी। साल 1989 के बाद उनकी यह कंपनी भारत की पहली जैव प्रौद्योगिकी कंपनी बन गई थी। उनकी इस लगातार मेहनत की वजह से साल 2003 तक उन्होंने इसे मानव इंसुनिल विकसित करने वाली पहली कंपनी बना दिया था। इस कंपनी ने साल 2004 में स्टॉक मार्केट में एंट्री ली थी और पहले ही दिन वह एक बिलियन डॉलर तक पहुंच गई थी, और इसी साल कंपनी ने 500 करोड़ का रेवेन्यू जेनेरेट किया था। उन्होंने इस कंपनी के अलावा दो सहायक कंपनियों का भी निर्माण किया है, जिसके नाम हैं सिनजीन इसकी स्थापना साल 1994 में हुई और क्लिनिजीन जिसकी स्थापना साल 2000 में हुई थी, और यह दोनों कंपनियां खोज अनुसंधान के लिए सेवाएं प्रदान करतीं हैं।
किरण को जैव प्रौद्योगिकी में काफी रूचि है, वह भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग में बतौर सलाहकार परिषद के सदस्य के रूप में भी काम कर चुकी हैं। उन्होंने जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास के मार्गदर्शन के लिए भारत सरकार, उद्योग और शिक्षा को एक साथ लाने में एक निर्णायक भूमिका निभाई है। उनके इन कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने साल 1989 में किरण को पद्मश्री पुरुस्कार से सम्मानित किया था। इसके अलावा साल 2005 में सरकार उन्हें पद्म भूषण से भी सम्मानित कर चुकी है। उनका मानना है कि,"उद्देश्यपरक और चुनौती झेलने की भावना के साथ सपने का पीछा करना ही सफलता है। सफलता को प्राप्त करने का कोई आसान रास्ता नहीं है और न ही मेहनत का कोई विकल्प है। मेरा यह भी मानना है कि अलग तरीके से काम करना भी सफलता का मंत्र है - मजबूती से खड़े होने के लिए कुछ अलग करने की हिम्मत होनी चाहिए। बायोकॉन के नाम के साथ लिखा होता है 'अंतर हमारे डीएनए (DNA) में रहता है' और हम सब इसमें विश्वास रखते हैं। हम अन्य कंपनियों की नकल नहीं करते, बल्कि हमने अपने व्यापार के भाग्य की रूपरेखा स्वयं तैयार की है।"
वह कहती हैं कि, स्वास्थ्य के देखभाल की जरूरत केवल सस्ते आविष्कार के साथ पूरी हो सकती है, और इसी कारण बायोकॉन प्रभावी ढंग से विनिर्माण करने और बाजार में अनुकूल लागत के साथ दवाओं की विपणन में काफी सहायता मिली है।
किरण ने 45 साल की उम्र में स्कॉटलैंड निवासी जॉन शॉ से साल 1998 में शादी की थी, जो 1991-1998 तक मदुरा कोट्स के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक रह चुके हैं और वर्तमान समय में बायोकॉन लिमिटेड के उपाध्यक्ष हैं। किरण एक कला पारखी है और उनके पास चित्रों और कला से संबंधित चीजों का काफी विशाल संग्रह है। वह कॉफी टेबल किताब, एले एंड आर्टि, द स्टोरी ऑफ बीयर किताबों की लेखिका भी हैं।
अपने बिजनेस से अलग वह समाज कल्याण में भी लगी रहती हैं। साल 2004 में उन्होंने कमजोर वर्ग के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता और पर्यावरण कार्यक्रम संचालित करने के र्लिए बायोकॉन फाउंडेशन की स्थापना की थी। इस फाउंडेशन के सूक्ष्म-स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम के अंतर्गत 70,000 ग्रामीणों का नामांकन किया गया है। उन्होंने ऐसी कई जगहों पर क्लीनिक खुलवाएं हैं जहां स्वास्थ्य सुविधाएं बहुत खराब हैं, ऐसी जगहों पर इनके प्रत्येक क्लीनिक 10 किलोमीटर के भीतर रहनेवाली 50,000 आबादी के लिए कार्य करने में संलग्न हैं। इनके यह क्लीनिक नियमित रूप से नेटवर्क अस्पतालों से चिकित्सकों और डॉक्टरों को दूरदराज के गांवों में ले जाकर सामान्य स्वास्थ्य की भी जांच करवाते हैं। इनका यह फाउंडेशन हर वर्ष 300,000 लोगों को स्वास्थ्य संबंधित सेवा प्रदान करता है। इसके अलावा यह फाउंडेशन चलती-फिरती चिकित्सा सेवाएं भी करता है व रोगनिरोधक स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम तथा मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल शिविर का भी आयोजन करता है।
किरण ने लोगों के लिए साल 2007 में डॉ॰ देवी शेट्टी के नारायण दृदयालय के साथ मिलकर बंगलौर के बूम्मसंद्रा के नारायण हेल्थ सिटी परिसर में 1,400 शय्यावाले कैंसर देखभाल केंद्र की शुरुवात की थी। इसका नाम मजूमदार-शॉ कैंसर सेंटर (MSCC) है, यह सबसे बड़े और जाने माने कैंसर अस्पतालों में से एक है, यह विशेष रूप से सिर, गर्दन, स्तन, और गर्भाशय ग्रीवा कैंसर के लिए है। इसके अलावा वह बंगलौर शहर के विकास के लिए बंगलौर एजेंडा टास्क फोर्स (बीएटीएफ (BATF)) जैसे विभिन्न कार्यक्रमों से जुड़ी हुई हैं।
किरणp भारत सरकार की एक स्वायत्त निकाय इंडियन फार्माकोपिया कमीशन के प्रबंध निकाय व सामान्य निकाय की सदस्य हैं। वह स्टेम सेल बायोलॉजी एंड रिजेनरेटिव मेडिसीन के लिए बने संस्थान की सोसाइटी की संस्थापक सदस्य भी हैं। उनको वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा व्यापार मंडल और विदेश व्यापार महानिदेशालय की सदस्य के रूप में भी नामित किया जा चुका है। वह भारत सरकार के नेशनल इनोवेशन काउंसिल की एक सदस्य और बंगलौर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के प्रशासक मंडल के सदस्य के पद पर कार्यरत हैं। वह विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान परिषद (एसईआरसी (SERC)), भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य के लिए बायो वेंचर्स की बोर्ड सदस्य और कर्नाटक में आयरिश दूतावास की मानद वाणिज्य दूत पद को भी संभाले हुए हैं। पिछले कई सालों से किरण का नाम दुनिया की अरबपति महिलाओं की लिस्ट में शामिल होता आ रहा है। कोरोना जैसे संकट में उनकी कंपनी ने दुनिया भर में दवा पहुंचाने में बहुत मदद की थी, जिस वजह से उन्होंने दुनिया भर में एक मज़बूत पहचान बना ली है।