साधारण सी लड़की सौम्या स्वामीनाथन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन का मुख्य वैज्ञानिक बन रचा था नया इतिहास

साधारण सी लड़की सौम्या स्वामीनाथन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन का मुख्य वैज्ञानिक बन रचा था नया इतिहास

सौम्या स्वामीनाथन विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक हैं, इसके अलावा वह एक बाल रोग विशेषज्ञ और नैदानिक वैज्ञानिक हैं जो कि तपोदिक पर अपने काम के लिए पहचानी जाने हैं। वह वर्तमान में स्वास्थ्य मंत्रालय और परिवार कल्याण, भारत सरकार में सचिव पद पर नियुक्त हैं भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की महानिदेशक भी हैं, जो कि जैविक चिकित्सा अनुसंधान को भारत में निर्माण, समन्वय और बढ़ावा देने के लिए सर्वोच्च संसथान माना जाता है। 
बता दें कि सौम्या का जन्म शनिवार को 2 मई 1959 को चेन्नई में हुआ था। इनके पिता का नाम एम एस स्वामीनाथन हैं। इनके पिता एक कृषक वैज्ञानिक हैं, जिनकी ख्याति पूरे भारत में" हरित क्रांति के भारतीय पिता" के नाम से है। उनके पिता ने ही चावल और गेंहू की अधिक उपज देने वाली किस्मों से परिचय कराया था। उनकी मां का नाम मीना है वह पूर्वस्कूली शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय शिक्षाविद है। सौम्या के दो भाई बहन हैं, मधुरा स्वामीनाथन, जो कि भारतीय सांख्यिकीय संस्थान, कोलकाता में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर हैं और दूसरी बहन नित्या स्वामीनाथन, यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया में "लैंगिक विश्लेषण" व विकास के एक वरिष्ठ व्याख्याता हैं।
सौम्या जब छोटी थीं तब अपने पिता के साथ खेत के दौरों पर जाया करती थीं, वह अपने पिता को अपना रोल मॉडल मानती हैं। उन्होंने पुणे के आर्म्ड फोर्सेज मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त की है और दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) से एमडी व राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड से राष्ट्रीय बोर्ड से डिप्लोमेट किया हुआ है। उन्होंने कैलिफोर्निया के केके स्कूल ऑफ मेडिसन कॉलेज लॉस एंजिल्स से नियोनेटोलॉजी और पीडियाट्रिक पाल्मोनोलॉजी में पोस्ट डॉक्टरल मेडिकल फेलोशिप पूरी की थी, और ब्रिटेन के लीसेस्टर विश्वविद्यालय से बाल चिकित्सा श्वसन  रोग विभाग से भी फेलोशिप पूरी की है। वह साल 1992 में भरता वापस आ गईं थीं, इसके बाद उन्होंने तमिलनाडु में द नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च  इन ट्यूबरकुलोसिस में काम करने लगी थीं। उन्होंने करीब 18 सालों तक तापोदिक और एचआईवी में शोध किया था। वह अपने सहयोगियों में से पहली थीं जिसने टीबी की निगरानी और देखभाल के लिए आणविक निदान के उपयोग को बढ़ावा दिया था। वह चेन्नई में टीवी जीरो सिटी प्रोजेक्ट का हिस्सा थीं, जिसका उद्देश्य स्थानीय सरकार, संस्थानों और जमीनी स्तर के साथ मिल कर उन्मूलन का द्वीप बनाना था। उनको साल 2009 से 2011 तक जिनेवा में उष्णकटिबंधीय रोगों में अनुसंधान और प्रशिक्षण के लिए यूनिसेफ / यूएनडीपी / विश्व बैंक / डब्ल्यूएचओ के विशेष कार्यक्रम के लिए समन्वयक बनाया गया था।
सौम्या की कड़ी मेहनत और सफल परिणामों की वजह से उनको साल 2013 में चेन्नई के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन ट्यूबरकुलोसिस का बना दिया गया और साल 2015 में उनको भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद का महानिदेशक पद दिया गया। वह ऐसी दूसरी महिला हैं जिसको 30 सस्थानों की देख रेख करने वाली संस्था का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी मिली। इसके बाद उन्होंने भारतीय मेडिकल स्कूलों में अनुसंधान क्षमता के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया। चिकित्सा विभाग में दिए गए उनके इस योगदान की वजह से उनको अक्टूबर 2017 से मार्च 2019 तक, उनको विश्व स्वास्थ्य संगठन के उप महानिदेशक निदेशक नियुक्त किया गया। साल 2019 में विश्व स्वास्थ्य संगठन में वह मुख्य वैज्ञानिक बन गईं। इसी साल आई कोरोना महामारी पर की गई द्वि-साप्ताहिक प्रेस ब्रीफिंग में उन्होंने भाग लिया था। साल 2021 में उनको यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमन्त्री बोरिस जॉनसन की सरकार द्वारा आयोजित राष्ट्रपति पद की सलाह देने के लिए पैट्रिक वोर्लेस की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समूह, पैंडेमिक प्रीपर्डनेस पार्टनरशिप (पीपीपी) के लिए भी नियुक्त किया गया था। 
सौम्या को किताबें पढ़ने का बहुत शौक है, उन्हें शर्लक होम्स की लिखी गईं किताबें, जेन आइरे, साहसिक व रविंद्रनाथ टैगोर की किताबें पढ़ना बेहद पसंद हैं। वह हमेशा से लोगों की मदद् के लिए हमेशा तैयार रहती हैं, उन्होंने कई बार वंचित आबादी की मदद् की है, और एचआईवी संक्रमित परिवार के लिए दवाएं प्राप्त करने के लिए धन भी जुटाया है। जब वह चेन्नई में रिसर्च कर रहीं थी, तब उस वक्त वह टीवी से पीड़ित गरीब रोगियों के घर जाकर उनकी मदद् करती थीं, और उनके बच्चों की भी देखभाल करती थीं। वह अपने पिता की ही तरह हमेशा किसानों की सहायता करने के लिए हमेशा तत्पर रही हैं। जब वह बचपन में अपने पिता के साथ उनकी प्रयोगशाला जाती थी वहीं से उनमें चिकित्सा शोधकर्ता बनने का जुनून पैदा हुआ था। सौम्या शुरुवात में पशु चिकित्सक बनना चाहतीं थीं, लेकिन उनके सभी दोस्त मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे थे, जिससे उनका इरादा भी बदल गया। 
उनको साल 2008 में तब के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आजाद से भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के लिए क्षनिका ओरेशन अवार्ड मिला था, और साल 2011 में उन्हें इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ अप्लाइड माइक्रो बायोलॉजिस्ट के लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिया गया था, और साल 2012 में तमिलनाडु विज्ञान और प्रौद्योगिकी पुरस्कार व राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उनको साल 2013 में इंडियन एकेडमी ऑफ साइंस पुरस्कार मिला था। साल 2021 में  तमिलनाडु सरकार ने उनको कोविड महामारी से लड़ने के लिए उनको सलाहकार भूमिका की मान्यता से सम्मानित किया गया था।