मजबूत आत्मबल और क्षमतावान व्यक्तित्व के धनी हैं विनायक राउत
मजबूत आत्मबल और क्षमतावान व्यक्तित्व के धनी हैं विनायक राउत
बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो अपनी लगन एवं ईमानदारी के बल पर फर्श से अर्श तक का सफर तय कर पाते हैं। महाराष्ट्र के रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग से सांसद विनायक राउत एक ऐसे ही राजनेता हैं। उन्होंने एक निगम पार्षद के तौर पर राजनीतिक जीवन शुरु कर प्रदेश के सबसे योग्य सांसद बनने तक का सफर अपनी लगन व मेहनत के दम पर तय किया है। विनायक भाउराव राऊत का जन्म 15 मार्च 1954 को महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले के तलगांव में हुआ था। उनकी स्कूली शिक्षा सिंधुदुर्ग में ही हुई। मुंबई विश्वविद्यालय से राजनीतिशास्त्र में एमए की डिग्री हासिल कर वे कारोबार में शामिल हो गये। समाजसेवा का जज्बा दिल मे था तो राजनीति में उतरने की सोची। बाला साहेब ठाकरे की विचारधारा से प्रभावित होकर उन्होंने शिवसेना ज्वाइन की और मुंबई की स्थानीय राजनीति में कदम रखा। 1985 में उन्होंने विले पार्ले से बृह्नमुंबई नगर निगम यानी बीएमसी के पार्षद पद का चुनाव लड़ा और विजयी हुए। 1992 तक वे पार्षद रहे फिर कुछ वर्षों तक संगठन की जिम्मेदारी निभाने में शामिल हो गये। 1999 में विले पार्ले क्षेत्र से ही महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में शिवसेना उम्मीदवार के तौर पर उतरे और जीते। 2012 में उन्हें महाराष्ट्र विधान परिषद का सदस्य चुना गया। दो साल बाद ही वर्ष 2014 में उन्हें पार्टी के टिकट पर 16वीं लोकसभा के लिये उनके गृह जिले सिंधुदुर्ग से चुनाव लड़ने का मौका मिला। यह एक ऐसी सीट थी जिसपर वर्ष 2009 में दिग्गज शिवसेना नेता सुरेश प्रभु हार चुके थे और कांग्रेस का कब्जा था, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। जनता से संवाद स्थापित करने में उन्हें सफलता मिली और उनकी शानदार जीत हुई। क्षेत्र में किये गये उनके कार्यों और लोगों से संपर्क बनाये रखने की उनकी कला के कारण क्षेत्र के मतदाता उनसे बेहद प्रसन्न रहते हैं। इलाके की जनता ने उन्हें दोबारा मौका दिया और भारी बहुमत से विजयी बनाया। 17वीं लोकसभा के पहले दो सत्रों में ही उन्होंने 23 बहसों व 6 विशेष उल्लेख चर्चाओं में सक्रिय भागीदारी की। उन्होंने स्वास्थ्य, कृषि, रोजगार, सड़क परिवहन आदि से जुड़े 126 प्रश्न व 2 पूरक प्रश्न किये। उन्होंने चार सरकारी बिलों को संसद में पेश किया है। उन्हें चार संसदीय कमेटियों का सदस्य बनाया गया है जिनमें जेनरल परपस, कृषि, वित्त संबंधी कमेटि और बिजनेस एडवाइजरी कमेटि शामिल हैं। दोनों सत्रों को मिला कर सदन में उनकी उपस्थिति 88 प्रतिशत रही।