सक्रियता की मिसाल है जाँबाज आईपीएस अशोक कुमार

सक्रियता की मिसाल है जाँबाज आईपीएस अशोक कुमार

सक्रियता की मिसाल है जाँबाज आईपीएस अशोक कुमार

एक ऐसे जाँबाज आईपीएस आफिसर जिसने हिमालय की तराई में पनप रहे आतंकवाद का नाम-ओ- निशान तक मिटा दिया और जो हर समय न्याय , मदद और सुरक्षा के लिये तैयार रहते हैं। यह परिचय है "कर्म ही पूजा है" के सिद्धांत को मानने वाले उत्तराखंड के डीजी ( लॉ एंड आर्डर ) अशोक कुमार का। 

15 नवंबर 1963 को हरियाणा के पानीपत जिला स्थित एक छोटे से गाँव ’कुराना’ में जन्मे अशोक कुमार का पालन-पोषण ग्रामीण परिवेश में ही हुआ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा गाँव के सरकारी स्कूल से ही हुई, वे पढ़ने-लिखने में बेहद तेज थे। स्कूल की पढ़ाई के फौरन बाद उन्होंने ज्वाइंट इंट्रेंस परीक्षा क्वालिफाई कर आईआईटी दिल्ली में दाखिला लिया। वर्ष 1986 में बीटेक और वर्ष1988 में एमटेक करने के बाद उन्होंने वर्ष 1989 में यूपीएससी की परीक्षा क्वालिफाई  की और भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हुए। उन्हें उत्तर प्रदेश कैडर मिला , विभाजन के बाद वे उत्तराखंड कैडर में आ गए। बतौर एसपी और एसएसपी, अशोक कुमार ने इलाहाबाद, अलीगढ़, चमोली, मथुरा, शाहजहाँपुर, मैनपुरी, रामपुर, नैनीताल और हरिद्वार जैसे जिले में अनेक चुनौतीपूर्ण कार्य कर पुलिस का इकबाल बुलंद किया। वर्ष 1993-94 में उन्होने नैनीताल के एसपी के तौर पर कुमाऊं के तराई क्षेत्र से  पैर पसार रहे आतंकवाद को  स्थानीय लोगों को साथ शामिल कर योजनाबद्ध तरीके से जड़ से खत्म कर दिया। वर्ष 2002 - 04 के बीच हरिद्वार के एसएसपी के रूप में वहां उभर रहे माफिया राज को पूर्णत: समाप्त करने का श्रेय भी इन्हे जाता है । वर्ष 2004-07 के बीच डीआईजी ( हेडक्वार्टर ) रहते हुए उन्होंने उत्तराखंड में पुलिस थानों , पुलिस लाइन और स्टेडियम के नवीकरण में कई सुधार किये । वर्तमान में वे उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक अपराध, कानून और व्यवस्था के पद पर तैनात हैं। इसके पूर्व अशोक कुमार आईजी गढ़वाल और आईजी कुमाऊं थे, जहां उनके मानवीय आधार पर पुलिसिंग में किये गये बदलाव की आज भी चर्चा है। उन्होंने प्रदेश के खुफिया और सुरक्षा के प्रमुख और निदेशक सतर्कता के रूप में भी काम किया, जहां उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रमुख अभियान शुरू किया। अशोक कुमार तीन वर्षों तक बीएसएफ में आईजी  (एडमिनिस्ट्रेशन) रहे हैं , इस दौरान उन्होंने जवानों के वेलफेयर के लिए कई सकारात्मक कार्य किए । वाघा बोर्डर की नई गैलरी के साथ ही ग्रेटर नोएडा , मथुरा , त्रिवेंद्रम आदि में नए कैंपस की संरचना भी उन्होने ही अपने नेतृत्व में करवाई ।  अशोक कुमार पिछले तीन सालों से रोड सेफ्टी , विमेन सेफ्टी और ड्रग्स फ्री इंडिया के लिए देहरादून मैराथन का आयोजन करते हैं , जिसमें बीस हजार से अधिक लोग भाग लेते हैं । वर्ष 2001 में संघर्षग्रस्त कोसोवो में सेवा देने के लिए अशोक कुमार को संयुक्त राष्ट्र पदक भी मिल चुका है। वर्ष 2006 में उन्हें सराहनीय सेवाओं के लिए भारतीय पुलिस पदक और 2013 के गणतंत्र दिवस के अवसर पर विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पुलिस पदक से सम्मानित किया गया। वे आईआईटी दिल्ली के पूर्व छात्रों द्वारा प्रतिष्ठित "राष्ट्रीय विकास में उत्कृष्ट योगदान" पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए है। अशोक कुमार 3 साल तक आईआईटी दिल्ली के सीनेट सदस्य रहे। वे प्रसिद्ध पुस्तक- ह्यूमन इन खाकी ’(खाकी में इंसान) के लेखक हैं। इस पुस्तक का बंगाली, गुजराती और मराठी में भी अनुवाद किया गया है। इसके लिए ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट, एमएचए द्वारा उन्हें गोविंद बल्लभ पंत पुरस्कार दिया जा चुका है। उन्होंने "चैलेंजेस टू इंटरनल सिक्योरिटी ऑफ इंडिया", "क्रैकिंग सिविल सर्विसेज द ओपन सीक्रेट" और "एथिक्स फॉर सिविल सर्विसेज" शीर्षक से तीन अन्य पुस्तकें भी लिखी हैं। 

फेम इंडिया मैगजीन - एशिया पोस्ट सर्वे के 12 मापदंडों - क्राईम कंट्रोल , लॉ एंड आर्डर में सुधार , पीपुल्स फ्रेंडली, दूरदर्शिता, उत्कृष्ट सोच, जवाबदेह कार्यशैली , अहम फैसले लेने की त्वरित क्षमता, सजगता, व्यवहार कुशलता आदि पर किए गए  "25 उत्कृष्ट आईपीएस 2020" के वार्षिक सर्वे में उत्तराखंड के डीजी ( लॉ एंड ऑर्डर ) अशोक कुमार , सक्रिय श्रेणी में प्रमुख स्थान पर है ।