आधुनिक समाज की जीनीयस - वंदना शिवा

आधुनिक समाज की जीनीयस - वंदना शिवा

आधुनिक समाज की जीनीयस - वंदना शिवा

भारत ही नहीं,पूरी दुनिया में अपनी मुहिम के लिये प्रख्यात वंदना शिवा को जहां टाइम मैगज़ीन ने ‘इन्वायरन्मेंटल हीरो’ की उपाधि दी है वहीं फ़ोर्ब्स ने उन्हें विश्व की सात सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची में रखा है। वंदना शिवा का जन्म देहरादून की घाटी में 5 नवंबर 1952 को हुआ। उनकी शिक्षा नैनीताल में सेंट मैरीज़ स्कूल और जीसस एंड मैरी कन्वेंट, देहरादून में हुई। वे एक प्रशिक्षित जिम्नास्ट रह चुकी हैं और भौतिकी विज्ञान में स्नातक की अपनी उपाधि प्राप्त करने के बाद, उन्होंने गुएल्फ विश्वविद्यालय (ओंटारियो, कनाडा) से "चेंजेज इन द कॉन्सेप्ट ऑफ पिरियोडिसिटी ऑफ लाइट" शीर्षक नामक शोध-प्रबंध के साथ विज्ञान के दर्शन में स्नातकोत्तर कला की अपाधि प्राप्त की। 1979 में, उन्होंने पश्चिमी ओंटारियो विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। बाद में वे बैंगलोर स्थित आआईएस एवं आईआईएम से भी जुड़ीं। वर्ष 1970 के दशक में वे उत्तराखंड के बहुचर्चित चिपको आंदोलन से बतौर स्वयंसेवक जुड़ीं। वर्ष 1982 में उन्होंने अनुसंधान फाउंडेशन और वर्ष 1987 में  'नवधान्य' नामक संस्था की स्थापना की। यह संस्था स्थानीय किसानों और विलुप्त हो रही फसलों व पौधों के संवर्धन की दिशा में कार्यरत है। बायोपाइरेसी, स्टोलेन हार्वेस्ट, मोनोकल्चर्स ऑफ़ माइंड जैसे अपने शैक्षणिक पेपर्स और किताबों के माध्यम से उन्होंने कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों को कड़ी टक्कर दी जो नीम, बासमती और गेहूं आदि फसलों की बायो-पाइरेसी यानी जैविक चोरी करने की कोशिश में थीं। वंदना शिवा ने कृषि और खाद्य पदार्थों की मौलिकता और उत्पादन के तरीकों में परिवर्तन लाने की साजिश के विरुद्ध संघर्ष किया है।  उन्होंने जेनेटिक इंजीनियरिंग के विरुद्ध अभियानों के माध्यम से अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका, आयरलैंड, स्विट्ज़रलैंड एवं ऑस्ट्रिया में हरित आंदोलन के मूलभूत संगठनों को मदद की है। उन्हें विश्व के कई संगठनों और संस्थाओं से कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। वंदना शिवा को  वैश्वीकरण के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय फोरम की नेताओं में माना जाता है। वे अल्टर ग्लोबलाइज़ेशन मूवमेंट की उन प्रणेताओं में से एक हैं ।