हर मुश्किल में संकटमोचक की भूमिका में हैं अजीत डोवाल
मोदी सरकार की हर रणनीति का अहम हिस्सा हैं वे। पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक हो, म्यांमार सीमा में रोहिंग्या उपद्रवियों को शांत करने का सर्जिकल स्ट्राइक, जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाने के बाद हालात सामान्य करने, दिल्ली में दंगा फैलने पर काबू करने की बात हो या चीन के साथ एलएसी विवाद का हल हो, हर जगह संकटमोचक की भूमिका में सामने आते हैं। जी हां उनका नाम है अजीत डोभाल। अजीत का मतलब होता है जिसे जीता ना जा सके। जैसा नाम ठीक वैसी ही शख्सियत। वे देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार हैं।
अजीत डोभाल का जन्म 1945 में उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में हुआ। उन्होंने अजमेर मिलिट्री स्कूल से पढ़ाई की और आगरा यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में एमए किया। वे खासे प्रतिभाशाली छात्र थे और 1968 में यूपीएससी के जरिये केरल बैच के आईपीएस ऑफिसर बने। अपनी नियुक्ति के चार साल बाद ही वर्ष 1972 में वे इंटेलीजेंस ब्यूरो से जुड़ गये और लगातार बने रहे।
अजीत डोभाल ने ज्यादातर समय खुफिया विभाग में काम किया। उनकी सामरिक और कूटनीतिक सोच के बारे में कहा जाता है कि जहां सबकी सोच खत्म होती है वहीं से उनकी सोच शुरू होती है। उनका काम करने का तरीका औरों से बिल्कुल अलग है। उन्होंने देश के लिए कई खतरनाक मिशनों को अंजाम दिया है। वे सात साल तक पाकिस्तान बतौर जासूस भी रहे। वर्ष 2005 में अजित डोभाल इंटेलीजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर पद से रिटायर हुए, लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी पीएम बने उन्होंने देश की हालात को देखते हुए उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया। मोदी सरकार के दूसरी बार सत्ता में आने पर भी अजीत डोभाल सुरक्षा सलाहकार हैं। उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा हासिल है।
देश के पांचवे सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल हिंदुस्तान की सुरक्षा कवच हैं जिसे वेध पाना किसी भी दुश्मन के लिए बेहद मुश्किल है। दरअसल शांत दिखने वाले अजीत डोभाल अंदर से काफी मजबूत इंसान हैं। उन्होंने मिलिट्री स्कूल में शिक्षा और खुफिया विभाग में काम करते हुए अपने को काफी मजबूत बनाया है। वे देश के लिए भी यही सोच रखते हैं। उनका मानना है, "इतिहास का निर्णय हमेशा उसके पक्ष में गया है जो शक्तिशाली है। वो उसका साथ नहीं दिया जो न्याय के साथ था। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि न्याय को छोड़ दे लेकिन जहां राष्ट्रहित की बात हो उस पर सख्ती से पेश आना जरूरी है।" डोभाल की यही विचारधारा उनकी शक्ति का मूल स्रोत है जिस पर वे कार्य करते हैं।
बतौर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार उनकी प्राथमिकता देश को सशक्त बनाने के साथ सीमा पार की खतरा से निपटने के लिए सरकार को अहम सलाह देना है, क्योंकि मौजूदा हालात में खासतौर पर चीन के साथ संबंधों को सुधारने का जिम्मा उनके कंधों पर है। भारत-चीन सीमा विवाद का स्थायी समाधान निकालने के लिए गठित समिति में भारत की ओर से डोभाल ही प्रतिनिधित्व करते हैं।
अजीत डोभाल एक ऐसे भारतीय हैं, जो खुलेआम पाकिस्तान को एक और मुंबई के बदले बलूचिस्तान छीन लेने की चेतावनी देने से गुरेज़ नहीं करते। भारतीय सेना के एक अहम ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान उन्होंने गुप्तचर की भूमिका निभायी और महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करायी। वे कांधार हैइजैक से लेकर हर अहम ऑपरेशन का हिस्सा रहे हैं। वे भारत के ऐसे एकमात्र नागरिक हैं, जिन्हें सैन्य सम्मान कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान पाने वाले वह पहले पुलिस ऑफिसर हैं।