दिल्ली के दिल पर राज करने वाले अरविंद केजरीवाल
भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी के खिलाफ अलख जगाकर दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा करने वाले अरविंद केजरीवाल राजनीति में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। वे दिल्ली की जनता के फर्स्ट च्वाइस वाले राजनेता हैं और विरोधियों के कड़े धन-बल प्रयोग के बावजूद उन्हें लोकप्रियता के शिखर से डिगाना नामुमकिन रहा है। चाहे सस्ती बिजली और सस्ते पानी के जरिये हो या शिक्षा और चिकित्सा में आमूलचूल सुधार के दम पर, इनकी आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्लीवालों से पूर्ण बहुमत हासिल किया है।
अरविंद केजरीवाल का जन्म 1968 में हरियाणा के हिसार में हुआ। उन्होंने आईआईटी खड़गपुर से मेकैनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री ली और टाटा स्टील में काम करने के बाद वे 1992 में भारतीय राजस्व सेवा में शामिल हुए। 1995 में उन्होंने 1993 बैच की आईआरएस अधिकारी सुनीता से शादी की। 1999 में उन्होंने नकली राशन कार्ड घोटाले को उजागर करने के लिए 'परिवर्तन' नामक एक आंदोलन की स्थापना की। आयकर, बिजली और खाद्य राशन से जुड़े मामलों में दिल्ली के नागरिकों की सहायता की। सामाजिक सरोकार को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। 2006 में पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की। उन्हें 2006 में उत्कृष्ट नेतृत्व के लिए रेमन मैग्सेसे अवार्ड मिला। करीब चार साल बाद 2010 में केजरीवाल समाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के साथ जुड़े। दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना के अनशन से केजरीवाल की लोकप्रियता बढ़ी। लोकपाल और भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन की उपज केजरीवाल की राजनीतिक पार्टी बनाने को लेकर अन्ना से मतभेद हुए और फिर 2012 में गठन हुआ केजरीवाल के आम आदमी पार्टी का। 2012 में केजरीवाल ‘गांधी टोपी’ जो ‘अन्ना टोपी’ का नाम ले चुकी थी उस पर लिखा ‘मैं आम आदमी हूं।’ अब आम आदमी राजनीतिक शक्ल अख्तियार कर चुका था ।
2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी पहली बार मैदान में उतरी। केजरीवाल खुद नई दिल्ली विधानसभा सीट से मैदान में उतरे और तीन बार की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को 25 हजार से ज्यादा मतों से हराया। कुल 28 सीट जीते, लेकिन मदद को आयी खुद कांग्रेस पार्टी और वे दिल्ली के सीएम बने। सरकार महज 49 दिन चली। 2015 में फिर दिल्ली में फिर विधानसभा चुनाव हुए और केजरीवाल की पार्टी रिकॉर्ड 67 सीट जीत कर दोबारा दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुई। 2020 में अरविंद केजरीवाल को 2015 से 5 कम सीटें आयीं, लेकिन विरोधियों को बोलने का स्पेस नहीं दिया क्योंकि केजरीवाल की ये जीत पीएम मोदी-अमित शाह की जोड़ी के खिलाफ ऐतिहासिक थी।
2013 में जब राजनीति में धमाकेदार तरीके से प्रवेश किया, उस समय अरविंद केजरीवाल राजनेता कम, आंदोलनकारी ज्यादा लगते थे। हालांकि वर्ष 2020 में अरविंद केजरीवाल तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने तो उनका अंदाज एकदम बदला हुआ था। वे इस विधानसभा चुनाव में संभल कर बोले और गैरजरूरी बयानों से बचें ।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को कामयाबी दरअसल उनके काम की वजह से मिली । उन्होंने पिछले पांच साल दिल्ली में काम किया है। बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य पर सरकार ने बुनियादी काम किए और न केवल काम किए हैं, बल्कि सोशल मीडिया और मीडिया के माध्यम से काम करने वाली सरकार की इमेज भी बनायी है।
कोरोना काल में केजरीवाल के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस महामारी पर काबू करना है । इसमें उनके मंत्रियों के गैर-जिम्मेदाराना रवैया का असर दिखा । लेकिन केजरीवाल ने केंद्र के साथ मिलकर काम करने की कोशिश की है। दिल्ली के मुख्यमंत्री की सबसे बड़ी खासयित ये है कि वे दिल्ली की जनता के नब्ज को अच्छी तरह से पढ़ चुके हैं। दिल्ली की जनता को जो कुछ भी भाता है केजरीवाल उसी को आगे कर देते हैं। विरोधियों के हर कदम का जवाब उनके पास है। देश में हिंदुत्व की बात करने वाली, राष्ट्रवादी एजेंडे पर चलने वाली बीजेपी को उन्होंने हनुमान चालीसा सुनाकर, हनुमान मंदिर जाकर और शाहीन बाग से दूरी बनाकर पटखनी दे दी।