मैगसेसे अवॉर्ड से मिली रवीश कुमार को दुनिया भर में शोहरत

रवीश कुमार ऑडियो-विजुअल मीडिया के ऐसे पत्रकार हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि चाहे आप उनसे प्यार करें या नफरत, उन्हें नजरंदाज नहीं कर सकते। अपनी अमिट छाप छोड़ने के तौर पर मशहूर इस शख्स की बातों में एक तरफ जहां गजब की मासूमियत है, वहीं दूसरी तरफ वे अपने शब्दों से जबरदस्त प्रहार करने में माहिर हैं। वे एनडीटीवी न्यूज़ नेटवर्क के हिंदी समाचार चैनल 'एनडीटीवी इंडिया' के संपादक हैं। वे चैनल के प्राइम टाइम पर सबसे ज्यादा देखे जाने वाले टीवी न्यूज शो में अपने मोनोलॉग के लिए जाने जाते हैं। ‘हम लोग’ और ‘रवीश की रिपोर्ट’ जैसे कार्यक्रमों ने उन्हें एक अलग पहचान दी है। हाल ही में मिले रैमन मैगसेसे अवॉर्ड के चलते उन्हें एक अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है।
रवीश कुमार का जन्म 5 दिसंबर 1974 को बिहार के मोतिहारी के जितवारपुर गांव में हुआ। उन्होंने पटना के लोयला हाईस्कूल से अपनी शुरुआती शिक्षा हासिल की और इसके बाद दिल्ली आ गये। दिल्ली यूनिवर्सिटी के देशबंधु कॉलेज से इतिहास में स्नातक किया। बाद में उन्होंने देशबंधु कॉलेज से इतिहास में एमफिल भी की। उन्होंने भारतीय जन संचार संस्थान से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त किया।
रवीश कुमार 1996 में एनडीटीवी इंडिया से जुड़े। एनडीटीवी में उन्होंने काफी तेजी से अपनी पहचान बनायी। एक रिसर्चर से सफर की शुरुआत कर वे कुछ ही महीनों में रिपोर्टर बन गये और कुछ ही दिनों में एनडीटीवी में एंकर और इसके बाद एक सीनियर कार्यकारी संपादक के पद तक पहुंच गये। उन्हें हर घटनाक्रम पर करीबी नजर रखने के लिए जाने जाना जाता है। ‘रवीश की रिपोर्ट’ और ‘प्राइम टाइम’ सहित उनके कई शो भारत ही नहीं, दुनिया भर में मौजूद हिंदी भाषी लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं। उनके ज्यादातर शो सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों से जुड़े होते हैं जो व्यवस्था की खामियों पर सवाल उठाते हैं।
रवीश कुमार के बारे में अक्सर कहा जाता है कि वे मुख्यधारा के उलट पत्रकारिता करते हैं। कहते हैं उन्होंने इसी को अपनी शक्ति बना ली और वे सरकार व व्यवस्था के सताये लोगों की सशक्त आवाज बन कर उभरे हैं। हालांकि वे अपने इसी अड़ियल स्वभाव के कारण अक्सर विवादों में भी रहते हैं और उन पर कई बार पक्षपात के आरोप भी लगे हैं। इसके बावजूद उनके साहस और साफगोई की तारीफ होती है।
रवीश कुमार खास तौर पर आम जन की आवाज उठाने के लिए जाने जाते हैं और भविष्य में वे इस पर पुरजोर तरीके से काम करने की इच्छा भी रखते हैं। उन्होंने लघु कथा लेखन की एक अनूठी शैली विकसित की है और वे इन कहानियों को लप्रेक-लगहु प्रेम कथा कहते हैं। उन्होंने इन कहानियों को ‘इश्क में शहर होना’ नामक पुस्तक में संकलित किया है। वे इस पर अक्सर काम करते रहते हैं ।
रवीश कुमार ने मीडिया में अपनी अलग पहचान बनायी है और उनका अंदाज औरों से जुदा व दमदार है। वे खुद कहते हैं कि विरोध उनका हथियार भी है और यार भी। उन्हें पढ़ने-लिखने का शौक है और उन्होंने कई किताबें लिखी है जिनमें इश्क में शहर होना के अलावे देखते रहिये, और रवीशपन्ती अहम हैं।
पत्रकारिता के क्षेत्र में रवीश कुमार के काम को समय समय पर बेहद सराहा गया है। वर्ष 2010 में गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, 2013 में रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म अवॉर्ड और 2017 में पत्रकारिता के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए प्रथम कुलदीप नायर पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अगस्त 2019 में उन्हें निर्भीक पत्रकारिता के लिए एशिया का नोबेल कहा जाने वाला रैमन मैग्सेसे अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया। फेम इंडिया मैगजीन-एशिया पोस्ट सर्वे के 50 प्रभावशाली व्यक्ति 2020 की सूची में वें स्थान पर हैं।