देश की शान हैं रॉकेट मैन कैलासवटिवु सिवन
भारत के विश्व प्रसिद्ध अन्तरिक्ष वैज्ञानिक कैलासवटिवु शिवन एक ऐसे शख्स हैं जो वास्तविक अर्थों में गुदड़ी के लाल हैं। कॉलेज तक पैरों में चप्पल तक न पहन पाने वाले इस कर्मयोगी के कदमों में आज पूरा ब्रह्मांड है। वर्तमान में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो के अध्यक्ष हैं। इसके पहले वे विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र और लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर के निदेशक रह चुके हैं। मजबूत इरादों के शिवन उस वक्त सुर्खियों में आये जब चंद्रयान-2 मिशन पूरा ना हो पाया और वे भावुक हो गये। उस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें ढांढस बंधाया। इसके बाद उत्साह के धनी सिवन और मजबूती के साथ फिर से मिशन को सफल बनाने की कोशिश में जुट गये। आखिर वे एक किसान के बेटे हैं जो हर विषम परिस्थितियों में ऊंचाई पर पहुंचने का जज्बा रखते हैं।
के सिवन का जन्म एक साधारण किसान परिवार में 14 अप्रैल 1957 को तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में नागरकोइल के पास मेला सरक्कलविलाई में हुआ। शुरुआती पढ़ाई सरकारी स्कूल में हुई। उनके पिता किसान थे और आम के बागान में कार्यरत थे। सिवन को भी बचपन में अपने पिता का हाथ बंटाने के लिए आम बागान में काम-काज करना पड़ा था। जब उनका चयन महंगे इंजीनियरिंग कॉलेज में हुआ तो परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण वहां एडमिशन नहीं ले पाये और मजबूरन पास के कॉलेज से ही गणित में बीएससी करना पड़ा। जब उन्हें बीएससी में मैथ्स में 100 फीसदी अंक मिले, तो उन्होंने पढ़ाई पर पूरा ध्यान देने का मन बना लिया। उनकी लगन और बढ़िया रिजल्ट को देखते हुए उनके पिता ने उन्हें बीटेक कराने के लिए अपने पास मौजूद खेत का कुछ हिस्सा बेचकर मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एडमिशन कराया। उन्हें एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में दाखिला मिला और बीटेक की डिग्री लेने के बाद जब तुरंत कोई नौकरी नहीं मिली तो आगे की पढ़ाई के लिए आईआईएसी यानी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एरोस्पेस साइंस से स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। उन्होंने आईआईटी बॉम्बे से ऐरोस्पेस में पीएचडी की डिग्री भी हासिल की है।
मेहनती सिवन ने 1982 में इसरो के विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर को ज्वाइन किया। सबसे पहले उन्होंने पीएसएलवी परियोजना पर काम किया। उन्होंने एंड टु एंड मिशन प्लानिंग, मिशन डिजाइन, मिशन इंटीग्रेशन एंड ऐनालिसिस में काफी योगदान दिया। सिवन ने साइक्रोजेनिक इंजन, पीएसएलवी, जीएसएलवी और रियूजेबल लॉन्च व्हीकल कार्यक्रमों में योगदान दिया है। इसी कारण से उन्हें इसरो का 'रॉकेट मैन' भी कहा जाता है। 1 जून 2015 को उन्हें विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर का डायरेक्टर बनाया गया । 15 फरवरी 2017 को भारत ने एक साथ 104 सैटेलाइट्स को प्रक्षेपित किया गया था। सिवन ने इस मिशन में अहम भूमिका निभायी थी। यह मिशन इसरो का विश्व रिकॉर्ड भी है। उनके स्किल और लीडरशिप को देखते हुए 2018 में उन्हें इसरो का चीफ बनाया गया। उन्हीं के नेतृत्व में चंद्रयान 2 लॉन्च किया गया था ।
के सिवन ने चंद्रयान 2 के लैंडर विक्रम के चंद्रमा की सतह पर हार्ड लैंडिंग से नुकसान का अनुमान जताया, जिससे कुछ समय के लिए संपर्क टूट गया। लेकिन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम का पता लगा लिया। साथ ही चंद्रमा का चक्कर लगा रहे ऑर्बिटर ने विक्रम की थर्मल तस्वीरें ली हैं, लेकिन पिछली खामियों को दूर करने की कोशिश जारी है। सिवन आगे और बेहतर रिजल्ट देने को प्रतिबद्ध हैं।
के सिवन गरीबी से सफलता के शिखर पर पहुंचे हैं। इसरो के प्रमुख बने लेकिन शालीनता को कभी नहीं छोड़ी। हर कामयाबी को टीम के साथ शेयर किया। सीखने की ललक और मेहनत से हर समस्या का समाधान किया। इसी वजह से उन्हें 2007 में इसरो मेरिट अवॉर्ड मिला। इसके बाद 2019 में के सिवन को डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम अवॉर्ड से नवाजा गया। सिवन को 2014 में सत्यभामा यूनिवर्सिटी, चेन्नई से डॉ. ऑफ साइंस की उपाधि दी गयी। 2020 का एरोनॉटिक्स के क्षेत्र में दिया जाने वाला सर्वोच्च वॉन कार्मन पुरस्कार के सिवन को देने की घोषणा की गयी है जिसे मार्च 2021 को फ्रांस के पेरिस में दिया जायेगा। वे फेम इंडिया मैगजीन-एशिया पोस्ट सर्वे के 50 प्रभावशाली व्यक्ति 2020 की सूची में वें स्थान पर हैं।