आउट ऑफ बॉक्स फैसला करने वाले अधिकारियों की जरूरत है देश को -नितिन गडकरी

आउट ऑफ बॉक्स फैसला करने वाले अधिकारियों की जरूरत है देश को -नितिन गडकरी

मैंने हमेशा उन अधिकारियों का सम्मान किया है जो जो आउट ऑफ बॉक्स निर्णय लेते हैं। वैसे अधिकारियों का कोई सम्मान नहीं करता जो कोई फैसला नहीं लेते। मैंने कई बार कहा है और आज भी कह रहा हूँ कि कोई निर्णय न लेना भ्रष्टाचार से भी बड़ा अपराध है। अगर जिलाधिकारी अपने जिले के लोगों के लिये कोई अच्छा और बोल्ड निर्णय सिर्फ इस आशंका से नहीं लेते कि भविष्य में उसकी विफलता के लिये उन्हें दोषी माना जा सकता है तो ऐसा करके वो उसकी सफलता की संभावना पर भी रोक लगा रहे हैं। मेरे एक मित्र, जो एक सफल आईएएस अधिकारी थे और उन्होंने हाल ही में रिटायरमेंट ली है ने एक आसान फॉर्मूला बताया। अगर कोई लोक कल्याणकारी निर्णय लेना है तो पूरी पंचायत बिठा कर लें। सारे संबंधित विभागों के अधिकारी, जन प्रतिनिधि, बैंक मैनेजर आदि जितने संबंधित लोग हों सबको अपने निर्णय में उनसे हस्ताक्षर करवा कर शामिल कर लें। अगर कल कोई सवाल उठाता है तो आपके फैसले को इतने सारे लोगों की ताकत मिलेगी। कई ऐसे उदाहरण हैं जिनमें आउट ऑफ बॉक्स निर्णयों ने समाज  की दिशा बदल कर रख दी है। मैं महाराष्ट्र से हूँ जहां हाल ही में कई जिलाधिकारियों ने अपने जिलों की कायापलट दी है।

आज के अधिकारियों को एक और चीज पर ध्यान देने की आवश्यकता है जिसे मैं जीवन के हर क्षेत्र में आवश्यक मानता हूँ। सर्विस हो, व्यापार हो या राजनीति, हर क्षेत्र में मानवीय संबंधों की महत्ता सबसे अधिक है। मैंने कभी भी किसी अधिकारी से मुलाकात करने में प्रोटोकॉल की परवाह नहीं की और मुझे हमेशा इसका बहुत सुखद नतीजा मिला है। अगर आप कितने भी बड़े अधिकारी हैं और अगर आपके सबॉर्डिनेट से रिलेशन अच्छे नहीं हैं तो आप सफल नहीं हो सकते। सम्मान दिल से आना चाहिये न कि आपकी कुर्सी के कारण, क्योंकि तभी आप सही निर्णय ले पायेंगे। मेरे अधिकतर निर्णय जो बहुत सफल हुए हैं उनमें में उन सचिवों का बहुत योगदान है जो खुलकर कहने की हिम्मत रखते हैं कि मैं किस प्वॉइंट पर सही हूँ और किस प्वॉइंट पर गलत। 

दूसरी महत्त्वपूर्ण बात है सोशल और नैशनल कमिटमेंट। मेरी नजर में यह एक ऐसी आवश्यकता है जो हर अधिकारी में होनी चाहिये। अगर आप समाज और राष्ट्र के हितों को ध्यान में रख कर निर्णय लेंगे तो आपको सदैव सराहना मिलेगी। एक अधिकारी को जाति, धर्म, भाषा और लिंग के भेद से ऊपर उठ कर फैसला करना सीखना चाहिये। अगर आपको कानूनी बंदिशें तोड़नी भी हों तो गरीब आदमी के लिये तोड़ो किसी बड़े आदमी के लिये नहीं। गांधी जी का वो वक्त्व्य याद रखो जिसमें उन्होंने कहा था कि कोई भी फैसला लेते समय समाज के सबसे गरीब व्यक्ति का चेहरा याद रखें और सोचें कि इससे उसे क्या लाभ मिल सकेगा। समाज के लिये कमिटमेंट बेहद आवश्यक है। हमारे बीच कई जिलाधिकारी ऐसे हैं जिन्हें पूरा देश गर्व के साथ देख रहा है। अच्छा कार्य करने की कोई सीमा नहीं है। अधिकारी अपनी शक्तियों का सदुपयोग करना सीखें। 

अंग्रेजी में एक कहावत है, "इफ देयर इज अ विल, देयर इज अ वे" यानी जहां चाह है वहां राह है। लेकिन अगर कुछ करने की चाहत ही नहीं है तो फिर केवल सर्वे, डिस्कशंस, सेमिनार्स, कमेटि, सब कमेटि आदि हैं। इच्छाशक्ति बहुत आवश्यक है किसी भी अच्छे कार्य को करने के लिये। मुझे लगता है कि समय कम है और देश में संसाधनों की कमी नहीं है। सभी ऑफिसर अगर तीव्र इच्छाशक्ति के साथ समाज और देश के लिये कार्य करने में जुट जायें तो हमें आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता। मेरी शुभकामनाएं आप सबों के साथ हैं।