वायरस पर रोक लगाने की अहम योजनाकार डॉ. निवेदिता गुप्ता
कोरोना से जंग में देश की अहम नीतिकारों में से एक डॉ निवेदिता गुप्ता को बेशक कम लोग जानते हों, लेकिन उनके कार्य करोड़ों देशवासियों का जीवन बचाने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। वे आईसीएमआर की वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं और फिलहाल कोरोना वायरस महामारी पर स्वास्थ्य संबंधी अनुंसधान विभाग की प्रभारी हैं। उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी है भारत में परीक्षण और उपचार प्रोटोकॉल का निर्धारण करना और उनके ही प्रयासों का नतीजा है कि भारत में एक दिन में सात लाख से भी अधिक लोगों की जांच की जा रही है।
दिल्ली की लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज से वर्ष 1994-1999 बैच में एमबीबीएस की डिग्री हासिल करने के बाद डॉ. निवेदिता गुप्ता ने वर्ष 2001 से 2004 के बीच जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से आणविक मेडिसीन में पीएचडी की है। उन्हें एक बेहद मेहनती और समझदारी से काम करने वाली वैज्ञानिक माना जाता है। वे सातों दिन, 24 घंटे कार्यरत रही हैं।
डॉ. निवेदिता गुप्ता को आणविक रिसर्च के मामले में महारत हासिल है। उन्होंने 2005 में इंडियन कॉउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च में ज्वाइन किया। वे वायरल इंफेक्शन और वैक्सीन प्रीवेंटेबल डिजीज में रिसर्च कोऑर्डिनेटर हैं। वे पिछले साल केरल में निपाह वायरस के प्रकोप की जांच और रोकथाम में शामिल प्राथमिक वैज्ञानिक भी थीं, लिहाजा उन्हें जानलेवा कोरोना बीमारी पर नियंत्रण की अहम जिम्मेदारी भी सौपीं गयी। वे देश भर में कोविड-19 की जांच और परीक्षण के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण शख्सियत हैं। दो महीने के कम समय में, कोरोनोवायरस मामलों के निदान के लिए सरकारी क्षेत्र में 130 से अधिक प्रयोगशालाएं और निजी क्षेत्र में 52 प्रयोगशालाएं बनवायी हैं। काम के प्रति उनकी लगन इतनी है कि वो कई दिनों तक जांच को खत्म करने के लिए कार्यालय में ही रहती है ताकि उनकी टीम का मनोबल ऊँचा रहे।
देश मे कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए फिलहाल हालात कठिन हैं और डॉ. निवेदिता गुप्ता के लिए इसे नियंत्रित करना पहली प्राथमिकता है। वे फिलहाल भारत में कोरोना के कम्युनिटी ट्रांसमिशन रोकने को लेकर प्रयासरत हैं। साथ ही वैक्सीन को लेकर भी चुनौती बढ़ गयी है क्योंकि कोरोना तेजी से फैल रहा है। ऐसे में वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल पर उनकी पैनी नजर है।
डॉ. निवेदिता गुप्ता एक बेहद संवेदनशील महिला हैं, लेकिन कोविड के दौर में उन्होंने मजबूत इरादों के साथ अपना कार्य किया है। वे वायरस अनुसंधान और डायग्नोस्टिक प्रयोगशाला नेटवर्क की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। 2009 में इन्फ्लूएंजा के प्रकोप के बाद स्थापित लैब को वायरस अनुसंधान और डायग्नोस्टिक प्रयोगशाला बनाने में उनकी भूमिका अहम रही है। इससे देश के करीब सभी हिस्सों में वायरस का पता लगाने की क्षमता सुनिश्चित हुई है। उन्होंने एंटरोवायरस, अर्बोविरस (डेंगू, चिकनगुनिया, जापानी एन्सेफलाइटिस और जीका), इन्फ्लूएंजा, खसरा और रूबेला की रोकथाम में अहम भूमिका निभायी है और कई सफल अभियानों का नेतृत्त्व किया है। वे भारत के विभिन्न हिस्सों में तीव्र एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम के लिए एटिओलॉजी को डिक्रिप्ट करने और बड़े पैमाने पर रोकथाम के प्रबंधन की कमान भी सफलतापूर्वक संभाल चुकी हैं। कोविड काल में भी उनके कार्यों का सुखद परिणाम सामने आने लगा है और स्थिति पर नियंत्रण की रोशनी दिखने लगी है। फेम इंडिया मैगजीन-एशिया पोस्ट सर्वे के 50 प्रभावशाली व्यक्ति 2020 की सूची में वें स्थान पर हैं।