हिंदुस्तान अखबार के प्रधान संपादक शशि शेखर

हिंदुस्तान अखबार के प्रधान संपादक शशि शेखर

पत्रकारिता जगत में एक ऐसा नाम जो अपने काम के तेवर और प्रोफेशनल नजरिेये के लिए जाने जाते हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं दैनिक हिंदुस्तान अखबार के प्रधान संपादक शशि शेखर की। उन्हें पत्रकारिता में करीब 40 साल का लंबा अनुभव  है। आज कल जिस उम्र में लोग करीयर शुरू करते हैं, उस उम्र में उन्होंने संपादक बनने का गौरव हासिल कर लिया था। अपनी भाषा की गहराई और अथाह आइडिया से उन्होंने अखबार से लेकर ऑडियो विजुअल मीडिया तक में अपनी धाक जमायी। उनकी राजनीतिक समझ के कारण कई पार्टियों के वरिष्ठ राजनेता उनसे गंभीर मसलों पर सलाह मशविरा किये बिना कोई ठोस कदम तक नही उठाते। 

शशि शेखर ने मीडिया की नब्ज को बड़ी ही बारीकी से टटोला है। उन्हें इस बात का अंदाजा है कि जनता की जरूरतें और दिलचस्पी किन मुद्दों में है। बड़ी-बड़ी बातें किये बिना और आदर्श बघारे बगैर भी खबरों को धारदार बनाने की कला उन्हें बखूबी आती है। उन्होंने हिंदी पत्रकारिता में ईमानदारी को बढ़ावा दिया और पत्रकारिता व पत्रकारों के प्रति खत्म हो रही लोगों की आस्था को वापस लौटाने में बड़ी जिम्मेदारी से काम किया। उन्होंने क्षेत्रीय खबरों को अहमियत दी। बड़ी खबरों का विश्लेषण और उसके गुण-दोष के आधार पर प्रकाशित किया। 
 
शशि शेखर ने आगरा के बीआर अंबेडकर यूनिवर्सिटी से हिंदी, संस्कृत, इंग्लिश और इतिहास में ग्रैजुएशन करने के बाद बनारस हिंदू  यूनिवर्सिटी से प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग से स्नातकोत्तर किया। शशि शेखर ने पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा भी हासिल किया है। 1980  में उन्होंने पत्रकारिता में कदम रखा। वर्ष 1984 में ‘आज’ अखबार के रेजिडेंट एडिटर बनाये गये। उन्होंने यूपी, बिहार और मध्यप्रदेश में आज का विस्तार किया। महज 24 साल की उम्र में  वे आज अखबार के संपादक बने। इसके बाद जनवरी 2001 से जुलाई 2002 तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के नंबर वन कार्यक्रम 'आजतक' में एक्जिक्यूटिव प्रोड्यूसर रहे।  जुलाई 2002 से सितंबर 2009 तक 'अमर उजाला' अखबार में ग्रुप एडीटर रहे। सितंबर 2009 में  21 संस्करणों वाले हिंदुस्तान के साथ नंदन, कांदबिनी और लाइव हिंदुस्तान डॉट काम के एडिटर इन चीफ बनाये गये। 11 साल से हिंदी के इस लीडिंग अखबार को अपनी मेहनत से बुलंदियों पर पहुंचा दिया। उनके बारे में कहा जाता है कि वो काम करते हुए कभी थकते नहीं हैं। अपनी इस असीम ऊर्जा से वे अपने अधीन कार्यरत सहकर्मियों की प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं। 

खामोशी से काम करने वाले शशि शेखर के सामने अपने अखबार को लगातार नंबर वन बनाये रखने की बड़ी चुनौती है। इसके लिए वे सतत प्रयास भी करते रहते हैं। कोई खबर ना छूटे और अखबार बेस्ट रहे, इसके लिए खुद अपने जूनियर से लेकर रिपोर्टर और प्रभारी तक को अप टू डेट रखने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। वे इसी शक्ति से टीम को आगे बढ़ाने की पहल करते हैं। उन्होंने ‘मिटता भारत बनता इंडिया’, ‘लीक से हटकर’ और ‘बदलाव की आहटें’ समेत पांच पुस्तकें लिखी हैं। 

शशि शेखर ने पत्रकारिता के शुरुआती दिनों में ही अखबार की ताकत को समझा और उसे मीडिया में तेजी से हो रहे बदलाव से जोड़ा। ये  उनकी खासियत रही है कि वे  पूरी तरह से स्वनिर्मित पत्रकार हैं।  जिस संस्थान से जुड़े, दिल से और ईमानदारी से काम करते रहे। वे होनहार जूनियर को प्रमोट करने में बिल्कुल नहीं हिचकते। शशि  शेखर मेहनत, दूरदृष्टि और अनुशासन को सफलता का मूलमंत्र मानते हैं।  उन्हें 1995 में ‘उत्तर प्रदेश रत्न’ और ‘माधव ज्योति अलंकरण’ से सम्मानित किया जा चुका है। फेम इंडिया मैगजीन-एशिया पोस्ट सर्वे के 50 प्रभावशाली व्यक्ति 2020 की सूची में वें स्थान पर हैं।