लोगों को जीने की कला सिखाते विश्वशांति गुरु श्रीश्री रविशंकर

लोगों को जीने की कला सिखाते विश्वशांति गुरु श्रीश्री रविशंकर

आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर शांति दूत, मानवीय मूल्यों के पोषक और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक के रुप में जाने जाते हैं। चेहरे पर मुस्कान और करुणाभाव उनकी पहचान है। अपने विभिन्‍न कार्यकर्मों और पाठ्यक्रमों, आर्ट ऑफ लिविंग एवं इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर ह्यूमन वैल्यूज सहित संगठनों के एक नेटवर्क तथा 155 देशों से भी अधिक देशों में तेजी से बढ़ रही अपनी उपस्थिति से वे अब तक 370 मिलियन से भी अधिक लोगों तक पहुँच चुके हैं।

रवि शंकर, का जन्म 13 मई 1951 को तमिलनाडु के पापानासम में हुआ था। इनके पिता आरएसवी रत्नम ने आदि शंकराचार्य से प्रेरणा लेते हुए उनका नाम रविशंकर रखा। वे बचपन से ही बेहद प्रतिभाशाली रहे और महज चार साल की उम्र से भगवद्गीता के श्लोकों का संस्कृत में पाठ करते थे। उन्होंने फिजिक्स और वैदिक साहित्य में डिग्री प्राप्त की है। वे हिंसा और तनाव मुक्त दुनिया की कल्पना पर कार्य करने में विश्वास रखते हैं । 
वे बचपन में ही भगवद्गीता का पाठ करने में सक्षम थे, और अक्सर ध्यान में लीन पाये जाते थे। 

दुनिया में बढ़ती अशांति और हिंसा के बीच आध्यात्मिक गुरु श्री-श्री रविशंकर ने आत्मीय शांति का मूलमंत्र देने का मन बनाया। वर्ष 1982 में, वे कर्नाटक के शिमोगा में 10 दिनों के लिए मौन व्रत पर चले गये। इस दौरान भद्रा नदी के तट पर उन्होंने सुदर्शन क्रिया को विकसित किया। दरअसल यह एक शक्तिशाली श्वास प्रणाली है, जो शरीर और मन को जोड़ती है। इसी सुदर्शन क्रिया को केंद्र बिंदु मानकर श्रीश्री रविशंकर ने 1982 में आर्ट ऑफ लिविंग की स्थापना की। इसके तहत उन्होंने  तनाव कम करने,  शिक्षा , आत्मविकास के प्रोग्राम, मानवीय भावनाओं को शक्ति प्रदान करने का काम किया। ये प्रणाली किसी खास समुदाय को आकर्षित नहीं करती बल्कि वैश्विक रुप से समाज पर प्रभावशाली साबित हुई है ।

1997 में श्रीश्री रविशंकर ने इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर ह्यूमन वैल्यू की स्थापना की। उन्होंने मानवीय दर्शन को ध्यान में रखते हुए मानव जीवन को बेहतर बनाने के लिए रिसर्च और सबूतों पर आधारित प्रोग्राम को शुरू किया, जिसका मकसद तनाव कम करना, अहिंसा को बढ़ावा देना और धार्मिक विद्वेष को कम करके समाज में आपसी सामंजस्य बढ़ाना था। इसके लिए उन्होंने लीडरशिप डेवलप किया। आर्ट ऑफ लिविंग और इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर ह्यूमन वैल्यू यानी आईएएचवी ने मिलकर भारत, अफ्रीका, साउथ अमेरिका के ग्रामीण लोगों के बीच स्वयंसेवक के माध्यम से प्रगति की और  करीब 41 हजार गांव तक अपनी पहुँच बनायी है। भारत में बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान करने वाले 618 स्कूलों की शुरुआत की है, जिससे 67000 से भी अधिक बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं और वर्तमान में उन्हें उपयोगी नागरिक बनने के लिए सुशिक्षित किया जा रहा है।

आध्यात्मिक गुरु के तौर पर श्रीश्री  ने योग ध्यान की परंपराओं को जागृत किया है, जो आधुनिकता के दौर में प्रासंगिक है प्राचीन ज्ञान को सुदर्शन क्रिया से जोड़कर उन्होंने लाखों लोगों को तनाव से मुक्ति और मानवता में ऊर्जा के स्रोत  को खोजने में अहम भूमिका निभायी है। महज 38 साल में 155 से ज्यादा देशों में पचास करोड़ से ज्यादा लोगों को आर्ट ऑफ लिविग से जोड़ा और लोगों को आदर्श जीवन शैली की शिक्षा दी है। श्री श्री रविशंकर शांति दूत के तौर पर जाने जाते हैं। उनकी कोशिश है कि योग और ध्यान के माध्मम से दुनिया के और देशों में शांति का पैगाम पहुंचे तथा विश्व भर के लोग आर्ट ऑफ लिविंग से जुड़ कर लाभान्वित हों।

श्रीश्री रविशंकर कई संवेदनशील मामलों में मध्यस्थता की भूमिका निभा चुके हैं। अपने हंसमुख और सौम्य विचार की वजह से  इराक युद्ध, कोसोवो में शांति, जम्मू-कश्मीर विवाद, राम जन्मभूमि विवाद जैसे  मसलों में तालमेल कराने में अहम योगदान दे चुके हैं। इन्हीं खासियतों की वजह से आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री को  मंगोलिया, कोलंबियाऔर पराग्वे का सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिल चुका है। अपने देश में उन्हें पद्म विभूषण औऱ दुनिया भर के एक दर्जन से ज्यादा देशों में मानद डॉक्टरेट की उपाधि मिल चुकी है।